लेकिन इस अन्धविश्वास के पीछे एक कारण है। पहले के ज़माने में प्रकाश प्रणालियों अच्छे नहीं थे। सफाई करने के समय कुछ छोटा गिरा हो तो धूल के साथ भूल से उसे भी फेंक दिया जाता। इस कारण क़ीमती सामान का खो जाने का डर रहता था। अन्य कारण यह है कि झाड़ू के टुकड़े दीपक पर गिर सकते थे, जिस्से आग का खतरा पैदा होता। इन कारणों की वजह से यह अन्धविश्वास पैदा हुअ।
साप मिथकों,
हिन्दु धर्म ग्रन्थो और भारतीय पुराणो के अनुसार नाग को कभी रक्षक के रूप में देखा जाता है, तो कभी विध्वंसक के रूप में। देश के कई क्षेत्रों में इनकी पूजा भी की जाती है। हिन्दु पुराणो के आधार नाग को कई जादूई शक्तियों का वर्दान होता है और इसलिए इनकी पूजा की जाती है।
आस्था या अन्धविश्वास?
कुछ का यह मानना है कि नाग दूध पीते है, उनके मस्तक पर एक हीरा या नागमणी होता है, और अगर उनको नुकसान पहुचाया जाये तो वह कदापि भूलते नहि।
एसा माना जाता है कि नाग के पास नागमणी होती है, परन्तु नाग के मस्तक पर कभी कुछ रखा नहि जा सकता। यह अन्धविश्वास सिर्फ हिन्दु पुराण के वजह से प्रचलित है।
कांच का टूटना.. आस्था या अन्धविश्वास?
कुछ संस्क्रितियों में इसे शुभ माना जाता है और कुछ में अपशगुन। भारत में यह अपशगुन माना जाता है खास कर किसी शुभ काम से पहले।
अंग्रेजी में एक कहावत है कि कांच तोडने पर सात साल की असफलता कांच तोड़ने वाले को मिलेगी। यह भी माना जाता है कि अगर शीशा अपने आप गिरकर टूट जाए तो उस घर में किसी की मृत्यु पक्की है। इसकी काफ़ी विवरण है। कुछ लोग मानते है की शीशे में हमारे आत्मा को कब्ज करने की ताकत मॉजूद है। इसीलिए उसका टूट्ना का मत्लब है हमारा आत्मा से अलग होना। समय के साथ यह विश्वास कांच के अंधविश्वास में बदल गया। एक और विवरण यह है कि पेह्ले कांच बहुत महंगा था, इसिलिए बच्चों को उससे दूर रखने के लिए ऐसी कहनियाँ बनाई गई हो। यह भी हो सकता है कि ताकि टूटे कांच से किसी को चोट ना लगे ऐसी अफ्वाहे फैलाई गई हो।
छींकना तथा टोकना,, आस्था या अन्धविश्वास?
जब कोई घर से निकल रहा हो तब उससे यह पूछकर टोकना कि कहा जा रहे हो अपशगुन है। ऐसा करने से जिस काम के लिए बाहर जाना था वो खराब हो जाएगा। इसी विश्वास के कारण भारत में बड़े हमेशा बताते है कि घर से निकलते समय किसी को कभी टोकना नहीं। घर से निकलने से पहले छीकना भी अपशगुन माना जाता है। छीक आने पर बोला जाता है कि बैठकर पानी पीना चाहिए वरना काम बिगड़ जाएगा। लेकिन अगर २ बार छीके तो ऐसा कुछ नहीं होगा।
नाखून काटना,, आस्था या अन्धविश्वास?
ह्म सब ने कभी न कभी यह सुना होगा कि रात में नाखून काटना अच्छा नहीं होता। इस अंधविश्वास के पीछे यह कारण है कि नाखुन काटने के बाद सफ़ाई करते समय कुछ कीमती सामान कूड़े में जा सकता है। साथ ही साथ पहले बिजली की समस्या बहुत थी तो रात में नाखुन गिर सकते है और पैर में चुब सकते है। इस वजह से यह अंधविश्वास सामने आया। इसके अलावा यह भी मानना है कि मंगलवार तथा शनिवार को नाखुन नहीं काटना। इसके पीछे कोई विवरण नहीं है।
पीपल पेड़ की छाया,, आस्था या अन्धविश्वास?
पीपल के पेड़ का हिंदुस्तान और विदेश में भी बहुत मानता है। कहा जाता है की पीपल के पेड़ में विष्णु, शनि, हनुमान तथाः अन्य भगवानो का वास है। इस कारन लोगो पीपल के पेड़ के नीचे नहीं बैटते बल्कि पेड़ की पूजा करते है। पीपल पेड़ पे लोग कुमकुम और हल्दी पूजा करने पर लगाते है और औरते पेड़ के चारो ऒर धागा बांधती है। पीपल का पेड़ हमे आक्सीजन देता है।
कुछ लोगो का यह भी कहना है की जहा भगवान का वास होता है, वहा बुरे का भी वास होता है। कहते है की शाम होने के बाद पीपल पेड़ के नीचे या आस पास भी नहीं जाना चाहिए, कक्युकी माना जाता है की उस समय पीपल के पेड़ पर भूत प्रेत का वास होता है। तो जिस तरह से हम पीपल के पेड़ को मानते है उतना ही उससे डरते है।
अंधविश्वासों के पीछे भागती दुनिया ,, आस्था या अन्धविश्वास?
गंडा-ताबीज : किसी की बुरी नजर से बचने, भूत-प्रेत या मन के भय को दूर करने या किसी भी तरह के संकट से बचने के लिए गंडे-ताबीज का उपयोग किया जाता है। गंडा-ताबीज करना प्रत्येक देश और धर्म में मिलेगा। चर्च, दरगाह, मस्जिद, मंदिर, सिनेगॉग, बौद्ध विहार आदि सभी के पुरोहित लोगों को कुछ न कुछ गंडा-ताबीज देकर उनके दुख दूर करने का प्रयास करते रहते हैं। हालांकि कई तथाकथित बाबा, संत और फकीर ऐसे हैं, जो इसके नाम पर लोगों को ठगते भी हैं।
आस्था या अन्धविश्वास?
विश्वास का खेल : यदि आपके मन में विश्वास है कि यह गंडा-ताबीज मेरा भला करेगा तो निश्चित ही आपको डर से मुक्ति मिल जाएगी। मान्यता है कि नाड़ा बांधने या गले में ताबीज पहनने से सभी तरह की बाधाओं से बचा जा सकता है, लेकिन इन गंडे-ताबीजों की पवित्रता का विशेष ध्यान रखना पड़ता है अन्यथा ये आपको नुकसान पहुंचाने वाले सिद्ध होते हैं। जो लोग इन्हें पहनकर शराब आदि का नशा करते हैं या किसी अपवित्र स्थान पर जाते हैं उनका जीवन कष्टमय हो जाता है। भभूति : धूने की राख से बनने वाली भभूति को 'ऊदी' भी कहते हैं। भारत में इसका ज्यादा प्रचलन है। मान्यता है कि किसी सिद्ध बाबा या स्थान से प्राप्त की गई भभूति को लगाने से संकट दूर रहते हैं और व्यक्ति को हर कार्य में सफलता मिलती है। ऊदी में शिर्डी के साईं बाबा के स्थान की ऊदी को सबसे चमत्कारिक माना जाता है।
इसे 'विभूति' भी कहते हैं। इसे व्यक्ति अपने मस्तक पर लगाता है और थोड़ी सी जीभ पर रखता है। मान्यता के अनुसार भभूति हर रोग, शोक, संकट और बाधा को दूर करने वाली होती है। यह जीवन में शांति और सुख देने वाली होती है।
अंधविश्वासों के पीछे भागती दुनिया ,, आस्था या अन्धविश्वास?
विभूति का सच : प्राचीनकाल में यज्ञ में हर तरह की औषधियां डाली जाती थीं जिसके चलते यज्ञ की विभूति को पवित्र और रोगों को दूर करने वाली माना जाता था। लोग इसे अपने मस्तक पर लगाते थे और कुछ मात्रा में इसे ग्रहण भी करते थे। लेकिन आजकल तो कंडे या बबूल की राख से ही भभूति तैयार कर ली जाती है। पवित्र जल : जल को हिन्दू धर्म में पवित्र करने वाला माना गया है। जल की पवित्रता के बारे में वेद और पुराणों में विस्तार से उल्लेख मिलता है। यह माना जाता है कि गंगा में स्नान करने से पाप धुल जाते हैं और मन निर्मल हो जाता है। गंगा नदी के जल को सबसे पवित्र जल माना जाता है। इसके जल को प्रत्येक हिन्दू अपने घर में रखता है। गंगा नदी दुनिया की एकमात्र नदी है जिसका जल कभी सड़ता नहीं है।
पवित्र जल छिड़ककर कर लोगों को पवित्र किए जाने की परंपरा भी है। आचमन करते वक्त भी पवित्र जल का महत्व माना गया है। मूलत: इससे कुंठित मन को निर्मल बनाने में सहायता मिलती है। मन के निर्मल होने को ही पापों का धुलना माना गया है। झाड़-फूंक : झाड़-फूंक कर लोगों का भूत भगाने या कोई बीमारी का इलाज करने, नजर उतारने या सांप के काटे का जहर उतारने का कार्य ओझा लोग करते थे। यह कार्य हर धर्म में किसी न किसी रूप में आज भी पाया जाता है।
पारंपरिक समाजों में ऐसे व्यक्ति को 'ओझा' कहा जाता है। कुछ ऐसे दिमागी विकार होते हैं, जो डॉक्टरों से दूर नहीं होते हैं। ऐसे में लोग पहले ओझाओं का सहारा लेते थे। ओझा की क्रिया द्वारा दिमाग पर गहरा असर होता था और व्यक्ति के मन में यह विश्वास हो जाता था कि अब तो मेरा रोग और शोक दूर हो जाएगा। यह विश्वास ही व्यक्ति को ठीक कर देता था।
अंधविश्वासों के पीछे भागती दुनिया ,, आस्था या अन्धविश्वास?
चंगाई सभा : आजकल दुनियाभर में ईसाई धर्म के प्रचार और प्रसार के तरीके बदल गए हैं। भारत में जहां चंगाई सभा करके लोगों को गंभीर से गंभीर रोग ठीक करने का दावा किया जाता है, वहीं पश्चिम में उत्तेजनापूर्ण भाषणों से लोगों को ईसाई धर्म से जोड़े रखने का उपक्रम किया जाता है। हालांकि इस तरह के ठगने के कार्य हिन्दू धर्म में भी किए जाते हैं। संत आसाराम, संत निर्मल बाबा जैसे लोग इसका उदाहरण है।
'चंगाई' में ईसाई पादरी और सिस्टर्स गरीबों और मरीजों को इकट्ठा करते हैं और फिर ईश्वर की प्रार्थना द्वारा लोगों को ठीक करते हैं। उसमें से कई तो मनोवैज्ञानिक खेल के प्रभाव में आकर फौरी तौर पर ठीक होने का दावा करते हैं, लेकिन बाद में वे फिर से वैसे ही बीमार हो जाते हैं। चंगाई सभा की भीड़ में अंतत: धर्मांतरण का खेल खेला जाता है। ये चंगाई सभा अधिकतर आदिवासी और ग्रामीण क्षेत्रों में होती है।
आस्था या अन्धविश्वास?
अंगूठी-रत्न : दुनियाभर में अंगूठी पहनने का प्रचलन है। ज्यादातर लोग राशि अनुसार अंगूठी पहनते हैं। इन लोगों का विश्वास है कि इससे हमारे बुरे दिन मिट जाएंगे और अच्छे दिन शुरू हो जाएंगे। बहुत से लोग अंगूठी पहनने की परंपरा को 'रत्न विज्ञान' कहते हैं। भारत में ज्योतिष लोग अंगूठी पहनने की सलाह देते हैं।
क्या व्यक्ति के जीवन पर रत्न या अंगूठी प्रभाव डालते हैं? उन्नति, धन एवं यश-कीर्ति के लिए लोग अंगूठी पहनते हैं। इसी के चलते विविध मोल और अनमोल रत्नों का व्यापार पूरे विश्व में फैला हुआ है। अधिकतर लोगों को नकली नगीना ही थमा दिया जाता है।
प्राचीनकाल और मध्यकाल की शुरुआत में लोग इसे आभूषण के रूप में ही पहनते थे लेकिन आजकल ये ग्रह-नक्षत्रों को सुधारने की वस्तु बन गए हैं। ग्रह-नक्षत्रों की अनुकूलता और उन्हें शांत करने के लिए लोग अंगूठी रत्न के अलावा यंत्र और माला को भी धारण करते हैं। अंगूठी एक आभूषण है जिसे अंगुली में पहना जाता है।
जादू-टोना, यंत्र-मंत्र-तंत्र,, आस्था या अन्धविश्वास?
जादू-टोना, यंत्र-मंत्र-तंत्र: कई लोग अपने संकट को दूर करने और जीवन में धन, संपत्ति, सफलता, नौकरी, स्त्री और प्रसिद्धि पाने के लिए किसी यंत्र, मंत्र या तंत्र का सहारा लेते हैं।
मंत्र तक बात समझ में आती है लेकिन तंत्र और यंत्र में भी लोग भरोसा करते हैं। कई बार लोग किसी तांत्रिक के चक्कर में उलझकर पैसा, समय और जिंदगी बर्बाद कर लेते हैं।
अखबारों, लोकल टीवी चैनलों पर कई तरह के बाबाओं, तांत्रिकों और ज्योतिषियों आदि के लुभावने विज्ञापनों के जाल में फंसकर लोग अपना धन लुटा आते हैं।
ज्योतिषी: क्या ज्योतिषी या लाल किताब के उपाय से व्यक्ति का भाग्य बदल सकता है? आजकल ज्योतिषी और लाल किताब का प्रचलन बढ़ गया है। लोग भारतीय ज्योतिष के अलावा अब पाश्चात्य और चीनी ज्योतिष में भी विश्वास करने लगे हैं। इसके अलावा टैरो कार्ड और न जाने कौन-कौन-सी ज्योतिषी विद्या प्रचलन में आ गई है।
अंगूठा शास्त्र, राशियां, कुंडलिनी, लाल किताब आदि असंख्य तरह की ज्योतिषी धारणा के चलते लाखों ज्योतिषी पैदा हो गए हैं और सभी ज्योतिषी लोगों का भविष्य सुधारने और बताने का व्यापार कर रहे हैं। यह विद्या कितनी वैज्ञानिक है, इस पर तो अभी शोध होना बाकी है। डरे हुए, अंधविश्वासी या कंफ्यूज लोग सभी को मानते हैं।
चौराहे पर लोग नींबू काटकर क्यों रखते हैं?,, आस्था या अन्धविश्वास?
चौराहे पर लोग नींबू काटकर क्यों रखते हैं?
* चौराहे पर रखे टोटको को ठोकर मारने वाला मुसिबत में पड़ जाता है?
* आप बिल्ली के रास्ता काटने पर क्यों रुक जाते हैं?
* जाते समय अगर कोई पीछे से टोक दे तो आप क्यों चिढ़ जाते हैं?
* किसी दिन विशेष को बाल कटवाने या दाढ़ी बनवाने से परहेज क्यों करते हैं?
* क्या आपको लगता है कि घर या अपने अनुष्ठान के बाहर नींबू-मिर्च लगाने से बुरी नजर से बचाव होगा?
* कोई छींक दे तो आप अपना जाना रोक क्यों देते हैं?
* क्या किसी की छींक को अपने कार्य के लिए अशुभ मानते हैं?
* घर से बाहर निकलते वक्त अपना दायां पैर ही पहले क्यों बाहर निकालते हैं?
* जूते-चप्पल उल्टे हो जाए तो आप मानते हैं कि किसी से लड़ाई-झगड़ा हो सकता है?
* रात में किसी पेड़ के नीचे क्यों नहीं सोते?
रात में बैंगन, दही और खट्टे पदार्थ क्यों नहीं खाते?
* रात में झाडू क्यों नहीं लगाते और झाड़ू को खड़ा क्यों नहीं रखते?
* अंजुली से या खड़े होकर जल नहीं पीना चाहिए।
* क्या बांस जलाने से वंश नष्ट होता है।
* शनिवार को लोहा, तेल, काली उड़द आदि नहीं खरीदना चाहिए।
* मंगलवार को नाखून काटना गलत है।
* चंद्र या सूर्य ग्रहण में बाहर नहीं निकलना।
आस्था या अन्धविश्वास? पार्ट 2...
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